७ फरवरी, १९७३

 

 मिथ्यात्वके लिये केवल एक ही समाधान है :

     हमारी चेतनामें जो कुछ भगवान्की उपस्थितिका निषेध

 करे, उससे अपने-आपको मुक्त करना ।

 

 ३१. १२. १९७२

 

हां, मै इसपर आग्रह करती हू; यह बहुत सत्य है - बहुत सत्य । हों सकता है इसे समझना आसान न हो, परंतु यह बहुत गभीर सत्य है ।

 

    हमारे अंदर जो कुछ मी भगवानको छिपाता है, विकृत करता और उनकी अणियक्तिको रोकता है वह वही है -- मिथ्यात्व ।

 

   यह तो बड़ा परिश्रम है !

 

मैं सारे समय यही तो करती रही हूं -- हर रोज, सारे दिन, तब भी जब मैं लोगोंसे मिलती हूं । यही एकमात्र चीज है जिसके लिये जिया जा सकता है ।